हेलो दोस्तों स्वागत है आप सभी का एक और नयी पोस्ट में क्या आप जानते हैं की फ्यूल इंजेक्टर क्या है । और ये कैसे कार्य करता है । चलिए जानते हैं कि फ्यूल इंजेक्टर क्या है ।
फ्यूल इंजेक्टर fuel injector
फ्यूल इंजेक्टर का प्रयोग डीजल इंजन में किया जाता है । ये डीजल को combustion इंजन में स्प्रे करने के लिए किया जाता है । सामान्यतः किसी द्रव को किसी जगह निश्चित स्थान पर प्रवेश कराना इंजेक्शन कहलाता है । और डीजल इंजन में फ्यूल को छोटे छोटे कणों में फुहार के रूप में सिलेंडर में पहुँचाना इंजेक्शन कहलाता है । यह इंजेक्टर के द्वारा किया जाता है । इसे फ्यूल स्प्रे वाल्व या ऑटोमाइज़र भी कहा जाता है ।
इंजेक्टर के द्वारा इंजेक्शन लगभग 1500 से 2000 प्रति वर्ग इंच के दबाव से किया जाता है । क्यूंकि कम्प्रेशन स्ट्रोक पौण्ड प्रति वर्ग इंच रहता है । उस समय दबी हवा का ताप 5000 C से 7000 C तक रहता है । इन इंजेक्शन के होते ही डीजल गर्म हवा के संपर्क में आने से जल जाता है । जिससे पावर प्राप्त होती है ।
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इंजेक्टर के मुख्य भाग
- नॉज़िल ( ऑटोमाइज़र )
- इंजेक्टर बॉडी
- नॉज़िल स्प्रिंग
- सेफ्टी कैप
- ओवरफ्लो रिटर्न पाइप
- प्रैशर एडजस्टिंग स्क्रू
- फ्यूल इनलेट
- लॉक नट
- स्पिण्डल
इंजेक्टर की बनावट कैसी होती है
कई छोटे और बड़े भागों को आपस में मिलकर इंजेक्टर बनाया जाता है । इंजेक्टर के सबसे ऊपरी भाग पर कैप नट और सबसे नीचे वाले भाग पर नॉज़िल फिट रहती है । बीच का भाग बॉडी होती है । बॉडी के अंदर स्पिण्डल , नॉज़िल स्प्रिंग , प्रैशर एडजस्टिंग स्क्रू, लगे रहते हैं । और इंजेक्टर की बॉडी में ही फ्यूल इनलेट और और ओवरफ्लो रिटर्न पाइप फिट किये जाते हैं । फ्यूल इनलेट में फ्यूल इंजेक्शन पंप से आता है । और ओवरफ्लो पाइप के जरिये अतरिक्त फ्यूल वापस जाता है ।
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इंजेक्टर कैसे कार्य करता है
एक इंजेक्टर में सामान्य स्तिथि में । नॉज़िल स्प्रिंग के माध्यम से सीट से लगा रहता है । और डीजल निश्चित समय पर फ्यूल इंजेक्शन पंप से इंजेक्टर के फ्यूल इनलेट मार्ग से बॉडी के अंदर बने फ्यूल पैसेज में आता रहता है । इस समय फ्यूल में पर्याप्त रहता है । इस दबाव के कारण नॉज़िल स्प्रिंग दबाव से ऊपर उठ जाती है । और फ्यूल पैसेज में जमा फ्यूल दबाव उत्पन्न होने से नॉज़िल में बने छिद्रों के द्वारा महीन फुहार के रूप में CUMBUSTION चैम्बर की गर्म हवा में फ़ैल जाता है । और गर्म हवा के संपर्क में आते ही डीजल जल जाता है । तथा इंजन में पावर प्राप्त होती है । इंजेक्शन होते ही फ्यूल पैसेज में फ्यूल का दबाव कम हो जाता है । और स्प्रिंग के माध्यम से नोजल वापस सीट पर वापस आ जाता है । और अतरिक्त वापस टंकी या फ़िल्टर में चले जाता है ।
इंजेक्टर नॉज़िल कितने प्रकार के होते हैं
इंजन और CUMBUSTION चम्बर के आधार पर ये अलग अलग प्रकार के होते है । ये मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं –
1 . मल्टी होल नॉज़िल – इस नॉज़िल में बहुत से छोटे छोटे छिद्र बने होते हैं । और इन्हें इंजन की उपयोगिता के आधार पर अलग अलग कोणों पर अलग अलग संख्या के नाप पर बनाया जाता है । इसमें एक साथ फ्यूल के अधिक फुहार CUMBUSTION चैम्बर में गिरती है । इससे डीजल जलने में सरलता होती है ।
2 . सिंगल होल नॉज़िल – इसमें केवल एक छिद्र बना रहता है । जिसके द्वारा डीजल की एक फुहार CUMBUSTION चेम्बर में आती है । इस प्रकार के नॉज़िल का प्रयोग अधिकतर छोटे इंजनों में होता है ।
3 . पिंटल नॉज़िल – इस प्रकार की नॉज़िल विशेष प्रकार की होती है । इनका प्रयोग अधिकतर PRE COMBUSTION CHEMBER वाले इंजनों में किया जाता है । इन इंजेक्टरों में इंजेक्शन दो भागों में होता है । इसमें नीचे की और से एक पिन या पिंटल रहता है । जो डीजल के दबाव में पूर्ण स्प्रे से पूर्व उठकर संक्षिप्त मात्रा का फ्यूल इंजेक्शन प्रथम चरण में करता है । इससे COMBUSTION चैम्बर की गर्म हवा डीजल के जलने से और अधिक गर्म हो जाती है । और फिर दूसरे चरण के इंजेक्शन के समय डीजल सुगमता व जल्दी से जलकर एक पूर्ण शक्ति विकसित करता है ।
इंजेक्टर टेस्टिंग कैसे की जाती है
इंजेक्टर बिना खराबी काफी समय तक कार्य करते रहते हैं । पर अधिक समय तक कार्य करने के कारण उनमें दबाव कम हो जाता है । जिससे कई समस्याएं उत्पन्न होती हैं । कई समय उनसे डीजल टपकने लगता है । जिससे फुहार का रूप भी बिगड़ जाता है । इस प्रकार की समस्यायों को थी करने के लिए इंजेक्टो में तीन प्रकार के टेस्ट किये जाते हैं । जो निम्न प्रकार के होते हैं –
1 . इंजेक्टर लीक टेस्ट – एक इंजेक्टर के लिए जरूय होता है । कि डीजल इंजेक्शन के पश्चात उसमें डीजल टपकता न रहे । सामान्यतः इस प्रकार का दोष नॉज़िल वाल्व की सीट घिस जाने से होता है । और इसे ठीक करने के लिए नॉज़िल वाल्व को नीडल ग्राइंडिंग पर ग्राइंड किया जाता है । और सीट के लिए लैपिंग की जाती है । तथा लैप और ग्राइंड करके इंजेक्टर टैस्टर पर इसको टेस्ट किया जाता है
2 . इंजेक्टर प्रैशर टेस्ट – ये इंजेक्टर में एक मुख्य दोष होता है । जिससे उचित प्रैशर के साथ इंजेक्शन नहीं हो पाता है । या यूँ कहें कि इंजेक्टर का प्रैशर कम हो जाता है । इस प्रकार के दोष को दूर करने के लिए इंजेक्टर को टेस्टर पर लगाकर उसका प्रैशर को चैक किया जाता है । कम या अधिक प्रैशर होने पर एडजस्टिंग स्क्रू को कैसा या ढीला किया जाता है ।
3 . इंजेक्टर स्प्रे टेस्ट – मुख्यता एक इंजेक्टर के द्वारा फ्यूल महीन कणों में स्प्रे होना चाहिए पर कई समय खराबी के कारण स्प्रै के स्थान पर धार बनने लगती है । या स्प्रे दो भागों में बँटने लगता है । इस प्रकार की समस्या को दूर करने के लिए इंजेक्टर का स्प्रे चैक किया जाता है । और इस प्रकार की समस्या को दूर किया जाता है ।
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